गजलें और शायरी >> वक्त की आवाज वक्त की आवाजआजाद कानपुरी
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वक्त की आवाज - आजाद कानपुरी के दिल की आवाज है
कबीर मेरे आदर्श हैं। मैं यह तो नहीं जानता कि मेरी गजलों में किस सीमा तक काव्य सिद्धान्तो का पालन हुआ है, लेकिन यह कह सकता हूँ कि जब आप इन्हें पढ़ेंगे तो लगेगा कि आप जो कहने में संकोच करते रहे वही कहा गया है।
हर तरफ खामोशियाँ छाने लगीं,
आहटें तूफान की आने लगीं।
साजिशों ने इस कदर घोला है जहर,
मछलियाँ पानी से कतराने लगीं।
मन्दिरो-मस्जिद नहीं लड़वा रहे,
कुर्सियाँ अब हमको लड़वाने लगीं।
रहबरी का राज - जाहिर हो चुका,
बस्तियाँ रहबर से घबराने लगीं।
नाखुदा साहिल पे है आराम से,
कश्तियाँ आपस में टकराने लगीं।
घर बाहर मत निकलिए साथियो,
बदलियाँ भी आग बरसाने लगीं।
आँधियाँ भी, बिजलियाँ और गोलियाँ
तुमसे अब आजाद घबराने लगीं।
आहटें तूफान की आने लगीं।
साजिशों ने इस कदर घोला है जहर,
मछलियाँ पानी से कतराने लगीं।
मन्दिरो-मस्जिद नहीं लड़वा रहे,
कुर्सियाँ अब हमको लड़वाने लगीं।
रहबरी का राज - जाहिर हो चुका,
बस्तियाँ रहबर से घबराने लगीं।
नाखुदा साहिल पे है आराम से,
कश्तियाँ आपस में टकराने लगीं।
घर बाहर मत निकलिए साथियो,
बदलियाँ भी आग बरसाने लगीं।
आँधियाँ भी, बिजलियाँ और गोलियाँ
तुमसे अब आजाद घबराने लगीं।
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